Thursday, August 26, 2010

शहरों को मात दे रहा उत्तराखंड का एक गांव


देहरादून [अनिल चमोली]। जब उत्तराखंड के ज्यादातर गांव देश के अन्य गांवों की तरह पिछड़ेपन, कुरीतियों, अभावों और इस सबके चलते पलायन से दो-चार हैं तब उत्तरकाशी जिले में एक गांव ऐसा है जो शहरों को मात देने के साथ गांधी जी के स्वावलंबी गांवों के सपने में रंग भर रहा है।

उत्तरकाशी जिले के दुरूह इलाके में स्थित रैथल आदर्श ग्राम का अनुपम उदाहरण पेश कर रहा है। इस गांव में बिछी सीवर लाइन, चमचमाती गलियां और जगमगाती स्ट्रीट लाइट देख लगता ही नहीं कि आप उत्तराखंड के किसी गांव में हैं।

गांव के बीचोंबीच लाखों की लागत से बना शानदार कम्युनिटी हाल और अत्याधुनिक सार्वजनिक शौचालय रैथल की समृद्धि की कहानी बयान करता है। इतना ही नहीं, गांव में गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस है तो हेलीपैड और स्टेडियम निर्माण प्रक्रिया में है।

लगभग दो सौ परिवारों वाला यह गांव उत्तराखंड का शायद पहला गांव होगा जहां एक भी परिवार ने पलायन नहीं किया। उत्तरकाशी मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर और समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर बसे रैथल की तस्वीर लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई यानी ग्राम सभा ने बदली है। शहर जैसी सुविधाओं से संपन्न रैथल गांव भटवाड़ी ब्लाक मुख्यालय से दस किमी दूर है और प्रसिद्ध दयारा बुग्याल [अल्पाइन ग्रास] पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के अंतिम पड़ाव पर है। रैथल चमचमाती पक्की सड़क से जुड़ा है।

मुख्यमार्ग से ही गांव में प्रवेश के लिए कई रास्ते हैं। गांव में जिस गली से भी प्रवेश करो वह सीसी या फिर टाइल्स से बनी है। साफ सुथरी गलियों से यहां के लोगों में सफाई को लेकर जागरूकता का अंदाज लगाया जा सकता है। गांव में बिजली की दो लाइनें हैं। एक विद्युत विभाग की तो दूसरी पर्यटन विभाग की स्ट्रीट लाइट वाली।

पहाड़ के हर गांव की तरह रैथल भी सीढ़ीनुमा है। गांव के बीचोंबीच चार सौ नब्बे साल पुराना लकड़ी का बना एक पांच मंजिला मकान आज भी सुरक्षित खड़ा है। सेब, आलू, राजमा और गेहूं यहां की मुख्य फसल है। 18 साल तक गांव के प्रधान और साढ़े नौ साल तक ब्लाक प्रमुख रहे चंद्र सिंह राणा का कहना है कि उनके गांव को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

Source:http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6677106.html

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